हरिद्वार – उत्तराखंड संस्कृत अकादमी और उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा अनुसंधान केन्द्र (यू सर्क) के संयुक्त तत्वावधान वर्तमान में भारतीय वैदिक गणित की प्रासंगिकता और महत्त्व विषय पर आयोजित एकदिवसीय कार्यशाला का अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया। वैदिकों द्वारा वैदिक मंगलाचरण और सरस्वती वंदना के साथ अकादमी के प्रेक्षागृह में कार्यशाला का शुभारंभ किया गया। संस्कृत शिक्षा सचिव डॉ० दीपक कुमार गैरोला ने संस्कृत शिक्षा विभाग द्वारा किये जा रहे कार्यों का विवरण देते हुए कहा कि संस्कृत भारतीय ज्ञान परम्परा का स्रोत व आधार है।संस्कृत शिक्षा विभाग आई आई टी रुड़की के साथ मिलकर संस्कृत भाषा के विकास के लिए कार्य करेगा। जिससे संस्कृत जगत में एक नई क्रांति आने की संभावना बढ़ेगी। संस्कृत भाषा की तार्किकता, स्पष्टता और संरचना कंप्यूटर विज्ञान, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और प्राकृतिक भाषा के लिए अत्यधिक उपयुक्त बनाती है। यदि इस दिशा में अधिक शोध किया जाए, तो संस्कृत कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। संस्कृत के विकास के लिए हमें लक्ष्य बना कर कार्य करने की आवश्यकता है।

शिक्षा निदेशक डॉ० आनन्द भारद्वाज ने कहा कि आज गणित न केवल शिक्षा और अनुसंधान में महत्वपूर्ण है, बल्कि विज्ञान, तकनीक, अंतरिक्ष विज्ञान, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, डाटा साइंस और वित्तीय क्षेत्र में भी इसकी महत्ता निरंतर बढ़ रही है।

प्रास्ताविक उद्बोधन करते हुए अकादमी के सचिव डॉ० वाजश्रवा आर्य ने कहा कि वेद ही वैदिक गणित का मूल हैं। वैदिक गणित में सरल सूत्रों के माध्यम जटिल गणितीय समीकरणों को हल करने की प्रक्रिया है।

भारतीय गणित की प्रासंगिकता एवं महत्ता पर बोलते हुए यू सर्क के वैज्ञानिक डॉ० ओम प्रकाश नौटियाल ने कहा कि भारत विश्व में गणित के क्षेत्र में अपनी प्राचीन और समृद्ध परंपरा के लिए प्रसिद्ध रहा है। शून्य का आविष्कार, दशमलव प्रणाली, बीजगणित, त्रिकोणमिति और गणितीय श्रेणियों का विकास भारतीय गणितज्ञों की अद्वितीय देन है। वर्तमान युग में, भारतीय गणित की प्रासंगिकता और महत्ता पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है। भारतीय गणितज्ञों जैसे आर्यभट, ब्रह्मगुप्त, भास्कराचार्य और श्रीनिवास रामानुजन ने विश्वगणित को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। दशमलव प्रणाली और शून्य का सिद्धांत संपूर्ण आधुनिक गणित और तकनीकी विकास का आधार है।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और अन्य वैज्ञानिक संस्थान गणितीय सिद्धांतों का उपयोग कर भारत को विश्व में अग्रणी बना रहे हैं।

भारतीय गणित क़े वैश्विक प्रभाव क़े सन्दर्भ में कहा कि -भारतीय गणितीय पद्धतियाँ न केवल देश में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अपनाई जा रही हैं। आज, दुनिया भर के शोधकर्ता और वैज्ञानिक भारतीय गणितज्ञों के योगदान से प्रेरणा ले रहे है।

कार्यशाला में बतौर अति विशिष्ट अतिथि डॉ० आशीष रतूड़ी ने नासदीय सूक्त का उदाहरण देते हुए कहा कि आज का मार्डन विज्ञान कैसे नासदीय सूत्रों को स्वीकार कर रहा है।

उन्होंने नासदीय सूक्त सृष्टि की उत्पत्ति के रहस्य पर प्रकाश डालता है। इसमें बताया गया है कि सृष्टि की उत्पत्ति से पहले न अस्तित्व था, न अनस्तित्व, न आकाश था, न मृत्यु-अमृत। तब केवल एक अदृश्य शक्ति थी, जो स्वयंसिद्ध थी। इसमें यह भी बताया गया है कि सृष्टि कैसे बनी और किसने बनाई। स्वयं देवताओं का भी जन्म सृष्टि के बाद हुआ, इसलिए यह रहस्य अज्ञात है। इसमें ब्रह्मांड की उत्पत्ति को लेकर वैज्ञानिक चिंतन किया गया है। अकादमी के वित्त अधिकारी सतेन्द्र प्रसाद डबराल ने सभी अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का मंच संचालन कार्यक्रम समन्वयक, अकादमी के शोध अधिकारी डॉ० हरीशचन्द्र गुरुरानी ने किया।

इस अवसर पर हरिद्वार नगरनिगम की मेयर किरण जैसल, कार्यशाला में वक्ता के रूप में डॉ० लक्ष्मी नरसिंहन्, डॉ० सुरेन्द्र विक्रम सिंह, डॉ० आशीष रतूड़ी, श्री मोहन सहित प्रदेश के समस्त संस्कृत सहायक निदेशक, संस्कृत विद्यालय महाविद्यालयों के आचार्य, प्राचार्य, शिक्षक, एनसीआरटी व डायट के प्रवक्ता सहित अकादमी के प्रकाशन अधिकारी किशोरी लाल रतूड़ी, प्रशासनिक अधिकारी लीला रावत, रमा, दिव्या, कविता, आकांक्षा, मोहित, विवेक, पंकज, ओमप्रकाश, अश्विनी आदि उपस्थित रहे।

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