बागेश्वर धाम सरकार आचार्य धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी की नौ दिवसीय सनातन हिन्दू एकता यात्रा के अन्तिम दिन समापन अवसर पर ओरछा में जगद्गुरु श्री रामभद्राचार्य जी महाराज, परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष, स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, आचार्य श्री मृदुल कांत जी, महंत श्री राजूदास जी एवं वृन्दावन के अन्य अनेकों पूज्य संतों का पावन सान्निध्य, उद्बोधन एवं आशीर्वाद प्राप्त हुआ।
सनातन हिन्दू एकता नौ दिवसीय यात्रा के विराम अवसर पर ओरछा में हजारों की संख्या में भक्तों एवं श्रद्धालुओं ने सहभाग किया।
आचार्य धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी ने बताया कि सनातन हिन्दू एकता यात्रा भेदभाव मुक्त भारत के संकल्प के साथ शुरू की गयी थी। उन्होंने कहा कि जब तक तन में प्राण है, तब तक हिन्दुओं के लिये यात्रा करते रहेंगे।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने सनातन हिन्दू एकता यात्रा के अंतिम दिन ओरछा में सहभाग कर कहा कि यह यात्रा केवल धार्मिक जागरण का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह समाज के हर वर्ग को साथ लाने और समरसता व करुणा की भावना को मजबूत करने का एक उत्कृष्ट प्रयास है।
आचार्य धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी ने इस यात्रा के माध्यम से न केवल हिन्दुओं को एकजुट किया है बल्कि समाज में आपसी भाईचारे और सद्भाव को भी प्रोत्साहित किया। यह यात्रा हमारे सनातन धर्म और संस्कृति की महानता को दर्शाती है और हमें हमारी जड़ों से जोड़ती है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि बागेश्वर धाम से निकली यह यात्रा ओरछा धाम तक आयी। यह यात्रा केवल बागेश्वरधाम तक ही नहीं बल्कि विश्व यात्रा बनेगी। महाकुम्भ प्रयागराज से इस यात्रा का आगाज़ होगा, इसके लिये योजना बनायी जा रही है। यह एक नई मशाल जली है जिसने एक नई मिसाल कायम की है। यह यात्रा भारत की यात्रा है जो एक महायात्रा बनेगी; महान यात्रा बनेगी।
आज यह यात्रा ओरछा में समाप्त नहीं हो रही है, यह यात्रा का अन्तिम पड़ाव नहीं है बल्कि समाज में जो ऊँच-नीच, छोटा-बड़ा और जात-पात की जो सोच है उसे अन्तिम पड़ाव मिले उसका यह महासंकल्प है। इसका संदेश बड़ा साफ है न कटेंगे न काटेंगे, न बटेंगे और न बाटेंगे, जात-पात, छूआछूत को दूर करेंगे, हम एक थे और एक रहेंगे। हम एक हैं तो सुरक्षित हैं क्योंकि जब-जब भारत कटा है तब-तब भारत बंटा हैं और जब-जब भारत बंटा है तब-तब भारत कटा है। अफगानिस्तान हो या पाकिस्तान हो, बांग्लादेश हो या कोई अन्य देश, सच तो यही है कि आज जो जहां है वही से नफरत की दीवारों को तोड़े, छोटी-छोटी दरारों को भरें और भारत को एक मजबूत व सशक्त राष्ट्र बनायें।
स्वामी जी ने कहा कि यह यात्रा कुम्भ से पहले एक नया कुम्भ है। सनातन की ध्वजा के लहराने का अवसर है। सनातन की ध्वजा सदा लहराती रहे क्योंकि सनातन, सब के लिये है, सर्वदा के लिये है, सनातन किसी को पीछे नहीं छोड़ता सब को साथ लेकर चलता है। सनातन बचेगा तो संसार बचेगा; सनातन है तो भारत है और भारत है तो सनातन है। सनातन बचेगा तो भारत बचेगा और भारत बचेगा तो सनातन बचेगा इसलिये आइये भारत को महान बनाये। अपने लिये बहुत कुछ किया अब भारत के लिये करंे और भारत के लिये जियें। हमें भारत के लिये मरने की नहीं बल्कि जीने की जरूरत है, एक नया जीवन देने की जरूरत है। हमें एक भेदभाव मुक्त भारत की जरूरत है। भेदभाव मुक्त भारत अर्थात मानवता युक्त भारत; सद्भाव, समरसता युक्त भारत। जिसमें सद्भाव और समता की गंगा प्रवाहित होती रहे; प्रेम की गंगा प्रवाहित होती रहे। यह समय नफरत की दीवारों को तोड़ने का है। भेदभाव की दरारों को भरने का समय है और दिलों को जोड़ने का है क्योंकि दिल जुड़ेंगे तो दुनिया जुडेंगी। यह यात्रा केवल एक मंच की नहीं है बल्कि हर मकान और हर मन तक पहुंचने की है।
अगर हम चाहते हैं की भारत, दूसरा बांग्लादेश कभी न बने, जिसकी सम्भावना भी नहीं है, फिर भी उसके लिये खड़े होना होगा, जुड़ना होगा, जोड़ना होगा; जुटना होगा और एक जुट रहना होगा क्योंकि जहां-जहां हिन्दू कम हो रहे हैं वहां-वहां आतंक बढ़ते जा रहा है। उन्होंने आह्वान करते हुये कहा कि आप सभी को हिन्दू बने रहना है, सनातनी बने रहना है।
स्वामी जी ने कहा कि हमारे आने वाले भविष्य को बचाना है तो युवाओं को साथ लेकर चलना होगा। इस यात्रा ने एक बार फिर से यह सिद्ध कर दिया कि सनातन धर्म की विचारधारा में समस्त मानवता के कल्याण की भावना निहित है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने सभी उपस्थित संतों और भक्तों का धन्यवाद करते हुए कहा कि इस यात्रा की सफलता आप सभी के सहयोग और समर्थन के बिना संभव नहीं थी। हमारी एकता और संकल्प शक्ति ही हमें समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने में सक्षम बनाएगी।
इस अवसर पर स्वामी जी ने एक घंटा मोबाइल फास्टिंग कर उस समय को राष्ट्र की सेवा में लगाने का संकल्प कराया। भव्य, दिव्य और समृद्ध भारत बनाने के लिये पर्यावरण संरक्षण, पौधारोपण व सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग न करने का संकल्प कराया।
स्वामी जी ने कहा कि इस यात्रा की याद में एक पेड़ माँ के नाम पर लगायें और भारत के ऊर्जावान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के संकल्प को पूरा करे।