हरिद्वार : भूपतवाला स्थित कबीर आश्रम में चल रही श्रीमद् भागवत कथा में कथा व्यास परम पूज्य परमहंस महामंडलेश्वर श्री पुनीत गिरी जी महाराज ने कहा जिसकी समस्त कामनाये परमात्मा में लीन हो जाती है जिसके मन की समस्त इच्छाये और तृष्णाये समाप्त हो जाती है वह ईश्वर मय हो जाता है उसके मन में और मस्तिष्क में सिर्फ ईश्वर का वास हो जाता है बस मन में यह इच्छा रह जाती है हे ईश्वर तू मेरा मैं तेरा जिस मार्ग से संत महापुरुष होकर गुजर जाते हैं उस मार्ग पर चलने की इच्छा रखने वाला भी संत बन जाता है परमात्मा आपसे दूर नहीं है वह तुम्हारे अंदर ही व्याप्त है राधा कृष्ण मे कोई भेद नहीं जो कृष्णा है वही राधा है और जो राधा है वही कृष्णा है जो मनुष्य इस पृथ्वी लोक पर यह समझ गया कि हमें परमात्मा को नहीं समझना है समझना तो सिर्फ अपने आप को है परमात्मा का स्वरूप काम है और निष्काम है जहां समस्त कामनाओं का अंत होता है वहां परमात्मा का मिलन होता है इस सृष्टि में जो आया है वह काम से नहीं बच पाया काम धर्म है और धर्म सारस्वत है हमें सिर्फ यह देखना है कि हमारी भक्ति हमारा पूजा पाठ हमारा सत्संग नि स्वार्थ बिना किसी इच्छा और बिना किसी लालसा के होना चाहिये क्योंकि जहां स्वार्थ आ जाता है वहा ईश्वर का वास नहीं होता ईश्वर ही जड़ है और ईश्वर ही चैतन्य है जो भक्ति नि स्वार्थ बिना किसी लालसा के होती है वह सीधे ईश्वर तक पहुंचती है श्रीमद् भागवत पावन कथा हमारे पावन धर्म ग्रंथ कथाये कथा नहीं ज्ञान रूपी कल्याण का अमृत है परमहंस सरिता स्वयं परमात्मा का विग्रह है जिसमें स्वयं परमात्मा समाहित है वेदों में स्पष्ट लिखा है कि अगर आपको लक्ष्मी चाहिये तो सत्य का अनुसरण करें और अगर आपको यश कीर्ति चाहिये तो त्याग का अनुसरण करें ईश्वर को आप बाहर खोज रहे हैं किंतु ईश्वर तो आपके हृदय में बैठे हुए हैं सच्चे हृदय से पुकार तो लगाइये किसी न किसी रूप में ईश्वर आपके सामने आपकी सहायता के लियें खड़े होंगे पांच तत्वों से बना यह स्थूल शरीर 7 तलों वाला है इसे एक दिन प्रकृति में विलीन होना होता है यहां जो इस धरा पर आया है उसे एक दिन जाना भी है जीवन सत्य है और मृत्यु सत्य है बाकी सब ब्रह्मा जी द्वारा रचित माया का भाग है इसलिये सत्य को पहचानो अपने कर्म के साथ-साथ ईश्वर की भक्ति कर इस मानव जीवन को सार्थक बनाओ अगर इस पृथ्वी लोक पर आने के बाद कामवासना ही तुम्हारा लक्ष्य है तो तुम्हारे में और पशु में कोई खास अंतर नहीं है और जो दोनों में घुस जाता है वही परमात्मा में लीन हो जाता है उसकी डोर सीधे परमात्मा से बंध जाती है इसीलिये इस सृष्टि में या तो पशु सुखी है या परमात्मा सुखी है बाकी तो सांसारिक माया जाल में फंसे हैं लेकिन इस मायाजाल से हमें सतगुरु ही बचा सकते हैं इसलिये सतगुरु के बताए मार्ग पर चलें सतगुरु ही उंगली पड़कर भवसागर पार लगायेगे इस अवसर पर बोलते हुए स्वामी परमात्मानन्द गिरी महाराज ने कहा जब वर्ष की बूंद सीप के खुले मुंह में जा गिरती है तो वह मोती बन उठाती है किंतु अगर वही बूंद सर्प के खुले मुंह में गिरती है तो विष बनती है जो गुरु की शरण में गये पूजा पाठ सत्संग धर्म ज्ञान के माध्यम से उनका मानव जीवन सार्थक हो गया इस अवसर पर बोलते हुए महामंडलेश्वर प्रबोधनानन्द महाराज ने अपने श्री मुख से ज्ञान की वर्षा करते हुए कहा इस पृथ्वी लोक पर ईश्वर के प्रतिनिधि के रूप में सतगुरु हमारे मार्गदर्शन हेतु विद्यमान है जो गुरु की शरण में गये उनका मानव जीवन सार्थक हो गया उन्हें ईश्वर तक पहुंचाने की युक्ति मिल गयी सतगुरु ने उन्हें उंगली पड़कर भवसागर पार करा दिया इस अवसर पर आचार्य रघुनंदन जी श्री सच्चिदानंद शास्त्री कोतवाल कमल मुनि महाराज सहित भारी संख्या में भक्तगण तथा संत गण उपस्थित थे