हरिद्वार :  (वरिष्ठ पत्रकार ठाकुर मनोजानंद) कनखल दक्ष रोड मंदिर स्थित श्री माधव धर्मार्थ ट्रस्ट रजि मे भक्तजनों के बीच ज्ञान रूपी अमृत वर्षा करते हुए आश्रम की संचालिका अध्यक्षता परम पूज्य मां आनंदमयी साधना मां ने भक्तजनों के बीच कहां नवरात्रे महापर्व भक्तों की भक्ति आस्था का पावन पर्व है जो भक्त सच्चे मन से माता की आराधना करते हैं उनके जीवन में धन-धान्य की वर्षा होती है और उन्हें पुनीत फलों की प्राप्ति होती है राम ही पीड़ा राम ही मरहम राम करे उपचार रे जिसके हृदय में भक्ति का वास हो गया हो वह सांसारिक मोह माया से दूर होकर वैराग्य के आधीन हो जाता है उसके मन में तृष्णा के लियें कोई स्थान नहीं रह जाता किंतु संसार से जुड़े रहने के लियें मन में प्रेम धरण करना आवश्यक और प्रेम ही इस संसार में सर्वोपरि है भक्ति के प्रेम में डूब कर भगवान भक्त के पास चले आते और भक्ति के रस में डूब कर एक माता अपने पुत्र का दुलार करती है और भक्ति के रूप रंग में खोकर एक पत्नी अपने प्रेम की वर्षा अपने पति पर करती प्रेम एक भक्ति है इसके रूप अनेक है अगर मन में प्रेम रूपी भक्ति घर कर गई हो तो मनुष्य संपूर्ण योग शक्ति के साथ ईश्वर की आराधना नहीं कर सकता इसलिये प्राचीन काल में बड़े-बड़े संत ऋषि मुनियों ने भी सर्वप्रथम ग्रहस्त आश्रम अपनाया और तृष्ण युक्त प्रेम भक्ति के सरोवर में स्नान करने के बाद अपने मन को ईश्वर भक्ति के लिये एकाग्र किया और भोग भी इसी जीवन की एक परम चश्पम सुख पवित्र रस धारा है जिसके बिना ना तो यह सृष्टि पूर्ण होती है और ना ही परिवार पूर्ण होता है और ना ही परिवार का संचालन हो सकता है इसीलिये इस सृष्टि का सबसे बड़ा आश्रम ग्रहस्त आश्रम है जिसके माध्यम से सभी आश्रमों का संचालन होता प्रेम की भक्ति की डोर सीधे ईश्वर से बंधी होती है और प्रेम से पुकारे जाने वाले शब्द सीधे ईश्वर तक पहुंचाते हैं क्योंकि अहंकार हमें सदैव पतन की और ले जाता है और शालीनता प्रेम के वशीभूत आप किसी को भी अपने वश में कर सकते हैं और जैसे मीरा ने भक्ति और प्रेम से भगवान कृष्ण को प्राप्त किया माता राधा ने प्रेम की पराकाष्ठा को उदाहरण के रूप में इस सृष्टि को दिखाया की जिसकी एक झलक पाने के लिए विश्व के बड़े-बड़े तपस्वी योगी करोड़ों वर्षों की तपस्या में लीन है उस सांवरे को कैसे पाया जा सकता है इसलिये प्रेम भक्ति और प्रेम सुधारस इस संसार में सर्वोपरि है प्रेम की डोर सीधे ईश्वर से बंधी हुई है प्रेम को शब्दों में अलंकृत नहीं किया जा सकता प्रेम समुद्र है और प्रेम की वर्षा अपार है प्रेम भक्ति है और प्रेम ही जीवन चाहे वह गुरु शिष्य की डोर के बीच बधा हो चाहे वह पुत्र और माता के बीच बधा हो चाहे वह अन्य सांसारिक रिश्तों से बंधा हो प्रेम मीत है प्रेम प्रीत है प्रेम बसे निज धाम रे

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