नई दिल्ली : 2 अक्टूबर स्वच्छ भारत मिशन के दस वर्ष पूर्ण होने की हर भारतीय को अपार खुशी है। आज स्वच्छ भारत दिवस – 2024, माननीय प्रधानमंत्री भारत श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में आयोजित कार्यक्रम में परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने सहभाग किया।
विज्ञान भवन दिल्ली में आयोजित कार्यक्र्र्रम में परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि आज स्वच्छ भारत दिवस-2024 के अवसर पर माननीय मोदी जी ने क्या वातावरण बना दिया। उन्होंने अपने उद्बोधन से सब को जोड़ लिया, यही तो चाबी है इस देश को जोड़ने की और सब को साथ लेकर चलने की। बातें पहले भी होती थी लेकिन माननीय मोदी जी की सब को साथ लेकर काम करने कि जो बात है वह अद्भुत है जिसके माध्यम से जन भागिदारी, जन जागरूकता और जन सहयोग को भी बढ़ाया जा सकता है। आज का यह मंत्र स्वच्छता ही सेवा, स्वच्छता ही स्वभाव, स्वच्छता ही संस्कार यह अद्भुत है। अब स्वच्छता हमारे संस्कारों में नहीं बल्कि हमारे व्यवहारों में भी आ जाये क्योंकि ये बहुत बड़ी जिम्मेदारी है।
माननीय प्रधानमंत्री जी ने बहुत बड़ी बात कही कि गंदगी हम रोज करते हैं तो स्वच्छता भी हम रोज क्यों नही कर सकते। अब तो यही मंत्र हो कि मेरा कचरा मेरी जिम्मेदारी। मेरा शहर मेरी शान और मेरा गांव मेरा तीर्थ बने और ये यात्रा स्वयं से होगी, स्वयं के घर से होगी और अपनी गली से होगी। ये घर से गली की यात्रा है; गली से गांव की यात्रा है। मोहल्ले से मुल्क की यात्रा है। इस यात्रा से सब जुड़े ओर सब को जोड़े।
स्वामी जी ने कहा कि गंदगी मेरी जिन्दगी न बने बल्कि मेरी जिन्दगी गंदगी साफ करने के लिये हो। अब समय आ गया कि हम दिमागों, दिलों और विचारों की गंदगी को भी साफ करे। गंदगी को साफ करना किसी एक दल का नहीं बल्कि दिल वालों का काम है।
स्वामी जी ने पूज्य बापू और पूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल बहादूर शास्त्री जी की जयंती पर उन्हें भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित करते हुये कहा कि अद्भुत व्यक्तित्व थे दोनों महापुरूष।
स्वामी जी ने कहा कि बापू तो चले गये परन्तु पूरे विश्व को अहिंसा का शाश्वत और चिरस्थायी मंत्र दें गये। आज अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस भी है। अहिंसा केवल हमारे व्यवहार में ही नहीं है बल्कि भारत के डीएनए में हैं। अहिंसा अर्थात् ‘हिंसा न करना’ ही नहीं है बल्कि जितना प्रेम हम अपने आप को करते हैं उतना ही प्रेम सम्पूर्ण मानवता से करना ही तो अहिंसा है। अध्यात्म की सबसे बड़ी शक्ति अहिंसा ही तो हैं।अहिंसा अर्थात् ‘हिंसा न करना’ ही नहीं है बल्कि जितना प्रेम हम अपने आप को करते हैं उतना ही प्रेम सम्पूर्ण मानवता से करना ही तो अहिंसा है। यह सम्पूर्ण मानवता हमारा ही तो विस्तार है;हमारा ही तो परिवार है। आत्मवत सर्व भूतेषु सब को समान रूप से देखो और शांति, सहिष्णुता, और करुणा को बढ़ावा दो यही तो अहिंसा है अहिंसा ही युगधर्म है। और आज के समय में तो पर्यावरण अहिंसा की सबसे अधिक जरूरत है।