ऋषिकेश : परमार्थ निकेतन में विख्यात कथाकार गोवत्स श्री राधाकृष्ण जी महाराज के श्रीमुख से श्रीमद्भागवत कथा की ज्ञान गंगा प्रवाहित हो रही है।

इस दिव्य कथा को श्रवण करने हेतु देश-विदेश व भारत के विभिन्न राज्यों से आये भक्तों व श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुये स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि कथा श्रवण करना; सत्संग करना अध्यात्म जीवन में प्रवेश की प्रथम कुंजी है। आध्यात्मिक होना और अध्यात्म को जानना सरल है परन्तु अध्यात्म को जीना कठिन है, पर यही जीवन जीने का सच्चा व वास्तविक मार्ग है। इस पवित्र गंगा तट पर श्रवण की कथा को अपने हृदय में उतरने देना तथा कथायें में बताये मूल्यों के अनुरूप जीवन जीने का प्रयास करना और कथा के मर्म को अपने साथ लेकर जाना।

स्वामी ने कहा कि ’भारत, ऋषियों की भूमि है और उत्तराखण्ड तो माँ गंगा का उद्गम स्थल है, हिमालय की भूमि है। यहां पर दुनिया के कोने-कोने से साधक शान्ति और योग की तलाश में आते है। भारतीय अध्यात्म एवं दर्शन ने सदियों से पूरी दुनिया को शान्ति और सदाचार की शिक्षा एवं संस्कार प्रदान किये हैं। स्वामी जी ने कहा कि धनवान वह नहीं जिसकी तिजोरी में धन हो बल्कि धनवान वह है जिसके जीवन की तिजोरी में मानवता हो, प्रेम हो, इंसानियत हो और ईमानदारी हो यही संदेश हमें कथायें देती हैं।

वर्तमान समय में कथाओं के आयोजन का उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण, जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिग, जल संरक्षण और प्लास्टिक से होने वाले नुकसान पर चर्चा करना करना भी होना चाहिये। अब हमारी कथाओं का स्वरूप हरित विकास और हरियाली संवर्द्धन का होना चाहिये तभी हम आन्तरिक और बाह्य वातावरण को शुद्ध, स्वच्छ और शान्तिमय बना सकते है। स्वामी जी ने कहा कि आज के समय की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है हमारे द्वारा उपयोग में लाया जाने वाला प्लास्टिक जिसके कारण जल, जंगल, जमीन और जीवन प्रभावित हो रहा है अगर हम सभी संकल्प करें तो इस भयावह समस्या से बाहर आ सकते हैं और अपनी भावी पीढ़ियों के लिये एक सुरक्षित वातावरण तैयार किया जा सकता है।

श्री राधाकृष्ण जी महाराज ने कहा कि कथायें हमें अपनी आध्यात्मिक संस्कृति से जोड़ती हैं। कथा हमें हरिः शरणम् का संदेश देती है। प्राचीन काल में हमारी पूर्वजों की सुबह भजनमय व संगीतमय होती थी। सांयकाल में संध्या वंदन होता था परन्तु समय के साथ हम इन दिव्य परम्पराओं से दूर हो रहे हैं हमें इस जागृति को पुनर्जीवित करना होगा। अपने परिवार को इन दिव्यता युक्त संस्कारों से जोड़ना होगा।
उन्होंने कहा कि माँ गंगा के पावन तट पर कथा के श्रवण मात्र से आध्यात्मिक कल्याण सम्भव है। परमार्थ निकेतन के दिव्य वातावरण में आकर ही मन दिव्य ऊर्जा से भर जाता है और आज तो हम सभी को पूज्य स्वामी जी महाराज का पावन सान्निध्य और आशीर्वाद प्राप्त हुआ।
उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में ’’केवल हरि नाम है अधारा, सुमर सुमर नर ऊपरहि पारा’’। यही हमारे जीवन का एक मूल मंत्र हो। उन्होंने गौ रक्षा और गौ की सेवा का संदेश देते हुये कहा कि अगर हम भगवान श्री कृष्ण से प्रेम करते हैं तो हमें गौ माता के संरक्षण के लिये प्रयास करने चाहिये क्योंकि यदि श्री कृष्ण किसी चीज से प्रेम करते हैं, तो वह है गौमाता। वर्तमान समय में पवित्र गाय की जो स्थिति है वह सभी भक्तों के लिए दुखद है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने श्री राधाकृष्ण जी को हिमालय की हरित भेंट रूद्राक्ष का पौधा भेंट कर देश-विदेश व भारत के विभिन्न राज्यों से आये श्रद्धालुओं को इस पवित्र यात्रा व कथा की याद में कम से कम पांच-पांच पौधों के रोपण का संदेश दिया तथा सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग न करने का संकल्प कराया।