हरिद्वार : (वरिष्ठ पत्रकार ठाकुर मनोज मनोजानन्द) श्री कबीर आश्रम भूपतवाला में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के समापन के अवसर पर आज पंचायती श्री जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय सभापति श्री प्रेम गिरि जी महाराज वरिष्ठ महामंडलेश्वर स्वामी श्री यतींद्रानन्द गिरी महाराज महामंडलेश्वर श्री चरणा सिद्ध गिरी महाराज महामंडलेश्वर आत्म वंदना गिरी महाराज महंत केदारपुरी महाराज महामंत्री महेश पुरी महाराज स्वामी आदित्य गिरी महाराज स्वामी सहजानंद गिरी महाराज श्रवण गिरी महाराज सचिव महंत महाकाल गिरी महाराज सहित अनेको संत महापुरुषों की दिव्य पावन उपस्थिति के बीच संत महापुरुषों के कल्याणकारी वचनों की गंगा में सभी भक्तों ने गोते लगाकर अपने जीवन को धन्य किया इस अवसर पर बोलते हुए पंचायती श्री जूना अखाड़े के अंतर्राष्ट्रीय सभापति परम पूज्य श्री प्रेम गिरि जी महाराज ने कहा अध्यात्म के बिना यह संसार अधूरा है मनुष्य और पशु में सिर्फ अंतर इतना है की पशु में ज्ञान नहीं होता और मनुष्य ज्ञान से परिपूर्ण होता है इसलिये मानव योनि सभी योनियों में श्रेष्ठ है परम पूज्य स्वामी प्रेम गिरि जी महाराज ने वेद शास्त्रों की महिमा का गुणगान करते हुए कहा ईश्वर कहते हैं वेदो में मैं विद्यमान हूं और वेद मुझ में समाहित है वेदों की पावन चर्चा मेरी ही चर्चा है इसलिये अपने जीवन को परमार्थ स्वरूप बनाये जिस प्रकार वृक्ष कभी अपने फल नहीं खाते नदी कभी ना खुद सींचे नीर उनका जीवन सदैव परमार्थ के लियें बहता है संचालित होता है सतयुग में आम जनमानस ने कठोर साधना से भगवान को प्राप्त किया है त्रेता युग में ज्ञान संवर्धन से प्राप्त किया है और द्वापर युग में भगवान की पूजा मूर्ति और मंदिर के रूप में स्वीकार हुई है किंतु कलयुग में मनुष्य ने गुरु के मार्गदर्शन में चरण धर्म के माध्यम से केवल भजन सत्संग के माध्यम से ईश्वर को प्राप्त किया है अन्य युगों के निमित्त इस कलयुग में ईश्वर को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है जो भागवत है जिसे श्रीमद् भागवत कहा जाता है उसमें साक्षात भगवान हरि त्रिमूर्ति स्वरूप में स्वयं विद्यमान है इस अवसर पर बोलते हुए कथा व्यास परम पूज्य 1008 श्री पुनीत गिरी जी महाराज ने कहा ना गुरु ने कुछ कहा ना शिष्य ने कुछ सुना फिर भी गुरु ने सब कुछ कह दिया और शिष्य ने सब कुछ सुन लिया सत्य की नाव के केवटिया इस पृथ्वी लोक पर साक्षात हमारे सच्चे पथ दर्शक मार्गदर्शक हमारे सतगुरु हैं हरि हर जगह मौजूद है पर नजर आते नहीं योग साधना के बिना कोई उन्हें पाता नहीं अप्यास हानि जीवन और मरण सब ईश्वर के हाथ तो हे मानव तू क्यों हुआ उदास इस संपूर्ण चराचर सृष्टि का संचार भगवान के हाथ है जीवन मरण और अप्यास सब उन्हीं के हाथ है सब कुछ ईश्वर के नियमित है तो इस चराचर सृष्टि में हमें उंगली पड़कर भवसागर पार करने वाले हमारे सतगुरु ईश्वर के प्रतिनिधि के रूप में हम लोगों के बीच विद्यमान है कथा ईश्वर का सार है जीवन कल्याण सुधा रस है जिसने जीवन में धारण किया वह भव पर हो गया आज जिन गुरु चरणों में बैठकर मैंने अपनी वाणी को सिद्ध किया है उन गुरु चरणों से मेरी वाणी सार्थक हो गई और मेरा जीवन मंगल से परिपूर्ण हो गया और हे भक्तजनों श्रीमद् भागवत कथा की अमृत वर्षा का रसपान करने के साथ-साथ गुरु जी के श्री मुख से निकली ज्ञान की गंगा में गोते लगाकर हम सब का जीवन धन्य हो गया ऐसा पावन संवाद जिन लोगों के जीवन में आता है वह बड़े ही भाग्यशाली एक तरफ कल्याणकारी श्रीमद् भागवत ज्ञान की वर्षा और दूसरी तरफ ज्ञान की गंगा में गोते मानो हमारे जन्मो जन्म के पुण्य का उदय हो गया है