पिथौरागढ : उत्तराखंड में रोमांच के शौकीन पर्यटकों के लिए आपार संभावनाएं हैं। यहां कई ऐसे क्षेत्र हैं जो रोमांच से भरपूर हैं। वह चाहे देवलथल, रिवर राफ्टिंग हो, पैराग्लाइडिंग या फिर ट्रैकिंग। इनके लिए अब प्रदेश में आने वाले पर्यटकों की संख्या में निरंतर इजाफा भी हो रहा है।

शुक्रवार को उत्तराखण्ड पर्यटन विकास परिषद देहरादून द्वारा एवं जिला पर्यटन विभाग पिथौरागढ़ के तत्वाधान में मानसखण्ड कुमाऊँ क्षेत्र में स्थित पर्यटक एवं धार्मिक स्थलों में लगातार भ्रमण कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। जिसके अन्तर्गत रेल मार्ग से टनकपुर पहुंचने के उपरांत शुक्रवार को जनपद चंपावत से गुजरात, महाराष्ट्र, नासिक एवं पुणे के 128 तीर्थ यात्री गंगोलीहाट पहुंचकर कर देवी काली को समर्पित मां हाट कालिका, पाताल भुवनेश्वर के दर्शन किया।
पर्यटकों द्वारा मानसखण्ड यात्रा की प्रशंसा की गई तथा भविष्य में पुनः आने की इच्छा प्रकट की गई। उन्होंने कहा हम सभी को नेचर से जुड़ना चाहिए, ताकि हम बीमारियों से दूर रह सके, पर्यटकों द्वारा क्षेत्र की क्लाइमेट की प्रशंसा की कहा यहां आकर बहुत अच्छा लगा जब हम अपने घर पहुंचेंगे तो अपने मित्रों को भी उत्तराखंड मानसखंड की यात्रा करने को कहेंगे।
यात्री दल द्वारा मां कालिका माता की जयकारा करते हुए जिला पर्यटन अधिकारी कीर्ति आर्य से क्षेत्र की पर्यटन स्थलों, मां हार्ट कालिका, पाताल भुवनेश्वर की जानकारी लेते हुए मंदिर परिसर में वीर बरारी सैनिकों
द्वारा स्थापित लगी घंटी के बारे में जानकारी ली जिस पर जिला पर्यटन अधिकारी ने विस्तार पूर्वक बताया कि यह ऐतिहासिक घंटी वीर बरारीयों ने पाकिस्तान के रावलपिण्डी से सन् 1918 में लाकर माँ कालिका को अर्पित की थी। जब वीर बरारी सैनिक युद्ध में फतह हासिल कर समूद्र रास्ते भारत लौट रहे थे तो अचानक समुद्र में भयंकर तूफान आया
जिससे वीर बरारी सैनिकों को ले जा रहे जहाज में कपंन होने लगी।जब जहाज को डूबने से बचाने के सभी प्रयास विफल हो गये तो वीर बरारीयों ने देवी हाट कालिका का स्मरण किया और प्रार्थना की। तब माँ हाट कालिका की कृपा से जहाज चमत्कारिक ढंग से सुरक्षित
किनारे पहुच गया। अपनी श्रद्धा का प्रमाण देते हुए वीर बरारीयों ने यह घंटी नंगे पाँव हाट कालिका मन्दिर पहुंचायी और माँ कालिका को समर्पित की जिस पर तीर्थ यात्रियों ने मां के जयकारे लगाए वह उत्साहित दिखे।
इस अवसर पर जिला पर्यटन अधिकारी कीर्ति आर्य एवं गुजरात, महाराष्ट्र, नासिक एवं पुणे तीर्थ यात्रियों के साथ ही स्थानीय लोगों भी उपस्थित थे।